सद् गंध हूँ
चमन में, सद्प्रेममय पुरवाई गह, मिलकर बहूँ|
सद् गंध हूँ, तज ईर्ष्या को प्रीतिमय हरदम रहूँ|
क्यों जल रहे हो, नेह-महक फैलने दो,गुणी सह
आनंद दिल बन, फूल-सदृश मुस्कराओ यह कहूँ|
बृजेश कुमार नायक
“जागा हिंदुस्तान चाहिए” एवं “क्रौंच सुऋषि आलोक” कृतियों के प्रणेता