सुख
सुख की है
यही परिभाषा
परिवार में
न हो कभी
निराशा
हो आपस में
संबंध
प्यार के
जो रिश्तों
में हो निराले
न रहे कोई
भूखा
तन पर हो
सबके
कपड़ा
खिलाये सब
एक दूजे को
निवाला
हो हर घर में
शिवाला
पूजा पाठ से
याद करें
विधाता
हो देश का
विकास
हर तरफ हो
सुख शांति
विश्वास
है सब यही
सुख की
परिभाषा
स्वलिखित
लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल