सुख दुख
“दुखों की लपटों के बीचों बीच गईं आंखें ll
जब दिल जल गया तो पसीज गईं आंखें ll
वे सपने जिनका अंजाम टूटना होता है,
उन्हीं सपनों को देखकर रीझ गईं आंखें ll
टूटी फूटी तकदीर से टिके जीवन में,
बेहद पक्की तस्वीरें खींच गईं आंखें ll
सुख दुःख के सारे पौधे सही सलामत हैं,
जब मन हुआ, क्यारियाँ सींच गईं आंखें ll
हमारी परिपक्वता का अंदाज़ा आप यूँ लगाईये,
भीड़ में हसना, संकीर्ण में रोना सीख गईं आंखें ll”