सुकूं आता है,नहीं मुझको अब है संभलना ll
बहुत हुआ,गुज़रे वक़्त से है निकलना ,
कैद ख्यालों की , तोड़कर है निकलना ll
कभी कहाँ बिगड़ी रंगों पर तबियत मेरी ,
फितरत है,काले रंग पर ही है मचलना ll
ये जिंदगी खुद चुनी है ,मैंने अपने वास्ते ,
नहीं अब किसी के लिए है, मुझे बदलना ll
नहीं बदलेंगे, नहीं आती कोई बनावट हमें ,
नहीं ज़माने को दिखाने के लिए है सवंरना
नहीं बदलेगा अब,किसी हाल सूरत-ए-गम ,
अब दर्द-ए-आईने मैं ही है, मुझे निखरना ll
यूँ बहुत उड़ लिए मेरे दर्द के पंखो पर तुम ,
अब थोडा तो तेरे,”पर” है ,मुझको कतरना ll
लगे रहने दे,यूँ ही अपने सीने से “रत्न” को ,
सुकूं आता है,नहीं मुझको अब है संभलना ll