सीमा
कठिन होता है
कठिन तो होता ही है
अपनी सीमा में रहना
सीमाओं का अनंत आकाश
और आजादी का एक कोना
बँध कर सीमा में
उन्मुक्त उड़ान कहां है मुमकिन
सब नजरिए का है रोना
मुश्किल है हां मुश्किल तो है
जानना और पहचानना
अपनी सीमा को
सीमा की परिधि किसने की है तय
कोई मुझे समझाएं
कौन चंचलता को काबू करे
और कौन भावनाएं दबाए
यह नियम आखिर
किसने हैं बनाए
दायरे, सीमा ,अपवाद है उन्मुक्तता के
कोई स्वच्छंद क्यों ना रह पाए
हर बंधन हर सीमा
सिर्फ बंधना समझाए
गर करे मन कलरव और
उड़ान का ध्यान
तो परिधि छोटी पड़ जाए
फिर क्यों कोई सीमा में बंध जाए
जो किसी नश्वर द्वारा ही बनाई जाए
क्यूँ सिमटता अपनाई जाए
क्यूँ सीमा मन को समझाई जाए
क्यूँ………..