सीमा वाला
ऊंचे पर्वतीय इलाके से जब स्थानांतरण पर मैं मैदानी जिले में पहुंचा तो मेरी ग्रहस्थी में पंखा था ही नहीं । सो पद पर योगदान देने के तुरंत बाद लोगों से पता करने पर ज्ञात हुआ कि बिजली के पंखों की अच्छी दुकान शहर के मुख्य बाज़ार में ” सीमा वालों ” की है । यह किस्सा उन दिनों का है जब सामान मंगाने के लियें अमेज़ॉन , फ्लिपकार्ट आदि का चलन नहीं था और न ही मोबाइल फोन और उसके नेविगेशन मानचित्र का अविष्कार हुआ था । आम आदमी कहीं आने जाने के लिये बिना किसी नक्शे के बस मौखिक और इशारों की भाषा के सहारे पूंछता पूंछता गन्तव्य को प्राप्त कर लेता था । ऐसे में परिसर के गेट से अपनी मोटरसाइकिल पर बाहर निकल कर मैं सामने स्थित किसी मुख्य मार्ग की सड़क पर आ गया । जब शहर अनजाना , लोग अनजाने , रास्ते अपरिचित जहां आप भी किसी को न जानते हों और न कोई आपको , ऐसे में झिझक का खुल जाना स्वाभाविक हो जाता है । अब वहां की सड़कों , चौराहों , गलियों से गुज़रते हुए मैंने लगभग हरेक गली , मोड़ , चौराहे अथवा गतिरोध पर पास में से निकलते , पड़ते लोगों या किसी दुकानदार आदि से बिंदास पूंछना चालू कर दिया –
” भइया ये सीमा वाले कि दुकान किधर पड़े गी ? ”
लगभग हर किसी ने मुझे उसका पता बताते हुए मार्गदर्शन दिया और शायद ही किसी ने मुझे पता बताने में निराश किया या ” सीमा वाले ” को जानने में अनभिज्ञता जताई । मैं आगे बढ़ते हुए सोच रहा था कि भला ये ” सीमा वाला ” कौन है जिसे इस शहर में हर कोई जानता है । उससे भी ज़्यादा उत्सुकता उस ” सीमा ” के बारे में जानने की हो रही थी जिसका वो ” वाला ” था क्यों कि जब उस ” सीमा वाले ” की पहचान और ख्याति की तादात इतनी ज़्यादा थी तो भला सीमा को जानने वाले कितने हों गे । क्या वो किसी एक ” वाले ” की है या अनेक ” वालों ” की ? वो ” सीमा ” कैसी हो गी ? क्या वो इस शहर की कोई सेलेब्रेटी है या कोई प्रख्यात नेता , कवित्री , मशहूर अदाकारा है अथवा कोई कुख्यात दस्यु सुंदरी है ? कैसे किसी ” सीमा वाले ” की ” सीमा ” हो गई ? यह भी हो सकता था कि शायद ” सीमा वाला ” देश की सीमा पर विजय प्राप्त कर लौटा कोई शूर वीर हो या फिर वो सीमा की वज़ह से नहीं बल्कि अपने खुद के वज़ूद से इतना चर्चित हो । ऐसा लगता था कि अब मेरी दिलचस्पी पंखे खरीदने से ज़्यादा ” सीमा ” को जानने की हो गई थी । यह भी हो सकता था कि सीमा दुकान पर ग्राहकों से सौदेबाजी करती हो गी और उसका ” सीमा वाला ” पैसों का लेनदेन । बहरहाल इसी उहापोह में ज्यों ज्यों लोगों के बताए अंदाज़ से ” सीमा वाले ” की दुकान की दूरी कम होती जा रही थी , सीमा को जानने की मेरी व्यग्रता उतनी ही बढ़ती जा रही थी । अंतिम बार पूंछने पर गुज़रते व्यक्ति ने सीधे अपनी उंगली के इशारे से बाईं ओर सामने से तीसरी दुकान की ओर इशारा करते हुए कहा –
” यही है सीमा वालों की दुकान ”
वह एक बिजली के सामान से ठुंसी दो दर की लंबी सी दुकान एक पतली गली में बाईं ओर स्थित थी , जिसके ऊंचाई पर लगे साइन बोर्ड के नीचे खड़े हो कर उस संकरी गली में सिर आकाश की ओर उठा कर ऊर्ध्वाधर दृष्टि से पढ़ पाना दुष्कर था । उस दुकान में बिजली के सामानों के अंबार के बीच एक लम्बे से काउंटर के पीछे अधेड़ावस्था को प्राप्त सम्भवतः एक भूतपूर्व सफल प्रेमी जोड़ा जिनकी देह भाषा बता रही थी कि उनके प्रेम की परिणीति एक सफल वैवाहिक जीवन के कुछ दशक निर्वाह उपरांत अब वे आजीविका पालन हेतु दुकान पर बैठे थे। उस समय वो एक दूसरे से विमुख , विपरीत दिषाओं में ध्यानस्थ किंतु काउंटर के नीचे अपने घुटने एक दूसरे से सटाये हुए बैठे बैठे ऊँघ रहे थे , दोपहर का वख्त था ग्राहक नहीं थे । मैंने मोटरसाइकिल सीट पर बैठे बैठे ही पैर से दुकान के चबूतरे पर टिका दी । फिर ज़रूरत से ज़्यादा आगे झुकते हुए अपनी गर्दन लम्बी कर लगभग दुकान के अंदर घुसा कर अपनी समग्र व्यग्रता छुपाते हुए उनसे पूंछा –
” क्या , सीमा वालों की दुकान यही है ”
उत्तर – ” हां ”
मोटरसाइकिल के इंजन के शोर को बंद करते हुए मैंने कहा –
” मुझे अमुक कम्पनी के कुछ पंखे चाहिये ”
उत्तर – ” मिल जायेंगे ”
फिर उन लोगों ने काउंटर के बाहर दुकान के कोने में स्टूल पर बैठे अल्पवेतन भोगी के अनुरूप एक लंबे एवम पतले से लड़के को माल निकालने के लिये कहा जिसे लाने वो दुकान के भीतर जा कर खो गया । अब रह गये हम तीनों – मैं और वो दोनों अधेड़ दम्पति । अपनी सारी उत्सुकता छुपाते हुए नगदी का भुगतान करते समय मैंने बड़ी विनम्रता और शिष्टता से अपने स्वरों में गोपनीयता बनाये रखते हुए और वाणी को चाशनी में डुबो कर उनसे पूंछा –
” ये सीमा कौन थी ? ”
इस पर वे प्रफ़ुल्लित हो मुस्कुरा कर एक दूसरे को देखने लगे , फिर मेरी समस्त शंकाओं का निराकरण एवम समस्त आकांच्छाओं पर तुषारापात करते हुए वो बोली –
” कोई नहीं भाईसाहब , मेरे ससुर के ज़माने के पहले से इस दुकान में पीढ़ियों से सीमा सिलाई मशीन की एजेंसी थी और हर घर में या कन्या के विवाह में हमारी सीमा सिलाई मशीन रखने या उपहार में देने का रिवाज़ था । अब नई पीढ़ी की रुचियों और मान्यताओं के बदलने के साथ साथ हमारा व्यापार कम हो गया सो अब हमने उसे छोड़ कर ये बिजली की दुकान खोल ली पर शहर के लोग आज भी हमें सीमा वाले के नाम से जानते हैं ”
अपनी सोच को एक अल्पविराम देते हुए उसे अवनति की दिशा दे कर मैंने एक ज़िम्मेदार गृहस्थ की भांति पंखे एक रिक्शा ट्राली पर रखवा कर उसे अपनी दृष्टि से ओझल न हो जाने देने के लिए अपनी नज़र ट्राली खींचने वाले की पिण्डलियों पर टिकाये मोटरसाइकिल उसके पीछे लगा दी ।
” सीमा ” अब मेरे भीतर के दिशाहीन ठरकी के कल्पना लोक में विचरण कर उद्वेलित कर रही थी , जो अब यह जानने के लिये आतुर था कि आखिर वो कौन थी जिसके नाम पर सिलाई मशीन का नाम था – ” सीमा “