सीधी सादी राह न चलते खुद को हम उलझाते हैं।
कसम उठाते हैं सुबह को शाम को जाम उठाते हैं।
शौक शाम के छूट न पाते सुबह को हम बहलाते हैं।
फ़ौज़ बहानों की लो हमसे क्यों पीते क्यों मरते हैं।
सीधी सादी राह न चलते खुद को हम उलझाते हैं।
बहुत सोचता हूँ मैं इसपर हैराँ होता रहता हूँ।
किसे याद कर तन्हाई में अक्सर वो मुस्काते हैं।
आता है सैलाब तो अपने संग सब कुछ ले जाता है।
अश्कों के सैलाब अदद इक गम क्यूं न धो पाते हैं।
नादाँ हैं वे नहीं जानते दिल को मय तर करती है।
बादाकश वे कहते मुझको दीवाना बतलाते हैं।
दुश्वारी की रेगिस्तानी दुनियां में रहते हैं पर।
जब भी मौका पा जाएं खुशियों की फसल उगाते हैं।
अरमानों की एक ख़ासियत “नज़र” बहुत ही प्यारी है।
पूरा करते उम्र बीतती पर बाकी रह जाते हैं।
Copyright. kumarkalhans.27,05,16