सीख प्रकृति की –
सीख प्रकृति की –
बिखरी उषा की लालिमा
सूर्य उगा हुई भोर ।
पत्तों के झुरमुट में
पक्षी करे किलोल ।
अलग अलग पादप हैं
पत्तें हैं भरपूर।
हर पत्ता अलग है
अगर करें हम गौर।
रंग है एक हरा
पर है सब का जुदा
हल्का हरा , गहरा हरा
मेहंदी हरा ,फौजी हरा
पीतवर्णा, हरितवर्णा
तेज हरा ,शीत हरा ।
महकाए फूलों को
पर न दे अपना रंग
संग मिल के रहें
सब आकारों के संग।
छोटा पत्ता ,बड़ा पत्ता
नीम का पत्ता ,बड़ का पत्ता
सुंदर कोमल डाली पर
विशालकाय पेड़ की सत्ता ।
लंबे गिरते ,छोटे संभलते
छूए तो कुंभलाए ,
बलखाते चद जाए ।
लता पर वृक्ष पर
दीवार पर डाली पर ।
कभी गिरे सहारा ले रंग का
कभी सभी सहारा बने उस संग का ।
सब बड़े रंग बिखरे
हरियाली से मन लुभाएँ
शीतल पवन हरित किसलय के संग
खुशनुमा करे हर घर आँगन ।