” सीखा आई “
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जिंदगी की इस सफर में हजारों लोग मिले ,
प्यार , दोस्ती के नाम पर छल – कपट का मुखौटा लिए ।
वो लगे रहे कोशिश में कि वह मुझे नीचा गिरा कर ,
मेरे स्वाभिमान को हिला सके ।
वो नादान इतना भी नहीं समझे ,
उनकी इस कोशिश की वज़ह से जिंदगी को जीना सीखा आई ।
वो मुझे और मेरे हृदय को तोड़ने जले ,
मैं भी सयानी निकली ,
प्यार का अर्थ सीखा आई ।
मुझे वो नफरत और मतलब का भेद सीखाने चले ,
मैं भी अपने स्वभाव की मारी ,
उन्हे प्रेम और और निस्वार्थ रिश्ते का अर्थ सीखा आई ।
? धन्यवाद ?
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✍️ ज्योति ✍️
नई दिल्ली