सिलसिला बदलती दुनिया का
मेरी नजर में उस आदमी का क्या वजूद
जो अपने शब्दों को न बांध सका
कहता है कुछ और कर जाता है कुछ
तो कैसे मान लिया जाये उस का यकीं !!
मेरा नजरिया शायद गलत हो
बस मेरी ही नजर में
पर चाहता हूँ कि आप भी
कुछ कह सके इस पर, उनकी खबर लें !!
सिलसिला चल निकला फिर से चुनाव का
दिल्ली कि गद्दी पर बैठने के लिए
केजरीवाल का साथ छोड़ छोड़ के
सब निकल पड़े, अपने स्वाभिमान के साथ !!
दल बदलू न कहें, तो और क्या कहें
कल तक था साथ मर मिटने का
आज उस में खोट निकल गयी
और हो गया बटवारा उस कि टीम का !!
कंधे से कन्धा मिला के चलने कि बात थी
बीच में आ गयी भा ज पा से मिलने कि बात थी
दूरियन इतनी हो गयी थी मर मिटने कि बात थी
आज मोदी के पहलू में निकली वो छुपने कि बात थी !!
धर्म परिवर्तन का चल रहा सिल्सिल्ला
साधू कहता क्यूं ने पांच बच्चे पैदा कर रहा
न जाने यह योगी हैं या संसार के भोगी ??
जो सारे संसार का नक्शा है बदल रहा !!
इंसानियत को भूलता जा रहा है संसार
इसी लिए बढ़ता जा रहा यहाँ अत्याचार
सब कि अपनी ढपली और बज रहा है तान
कोई कुछ सुनने को नहीं हो रहा तैयार !!
कवि अजीत कुमार तलवार
मेरठ