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9 Dec 2019 · 1 min read

सिलसलेवार सिलसिले

कुछ सिलसिले
सिलसलेवार चले
रुक न सके
कम नहीं हुये
खत्म होते भी तो कैसे
हो गये हम इतने पढ़े लिखे.

अनपढों ने खिंचा जिसे
उस आस्था को तोड़ते कैसे ?
शिक्षित हुये पट न खुले,

दर दर भटकते रहे,
आखिर जो मिला
उसे भी गँवा चले
भेड़ चाल जो थी
उसे तोड़ न सके

सिलसलेवार सिलसिले
किसका ऐतबार
कौन कृष्ण कैसे राम
हुई न जिनसे
खुद की पहचान.

कल का पाखंड
आज की परंपरा
तोड़ दो ऐसे संस्कार
महेन्द्र सिंह हंस

Language: Hindi
3 Likes · 2 Comments · 244 Views
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