सिर घमंडी का नीचे झुका रह गया।
गज़ल
212……212…..212…..212
सिर घमंडी का नीचे झुका रह गया।
जिंदगी की दुआ मांगता रह गया।।1
उसने जब वो सुना हादसा मौत का,
दिल का टुकड़ा गया कांपता रह गया।2
जैसा जिसने किया है मिलेगा वहीं,
ये तो सोचा नहीं सोचता रह गया।3
जीने मरने की जिसने न परवाह की,
अब तो जीते हुए वो मरा रह गया।4
उसकी खुशियों का कोई ठिकाना न था,
अब गमों का ही बस सिलसिला रह गया।5
उसकी खुशबू भी फैली नहीं थी अभी,
फूल खिलने को था अधखिला रह गया।6
जिसके प्रेमी थे जीवन में लाखों कभी,
साथ कोई नहीं कर्बला रह गया।7
……..✍️ सत्य कुमार प्रेमी