सिर्फ इतनी ही है “नारी”
नर और नारी का एक ही है भेद ,
नारी है मेनका , नर है शेर ।
हो आठ की या अठारह की या हो वो अठाइस की ,
सबके मन में छाई उसका जिस्म ही एक फरमाइश सी ।
सुनकर तुम्हारी तुच्छ टिप्पणियां ,
हर पल शर्म उसे आती थी ,
हर गली के नुक्कड़ – चौराहे पर चलती है घबराई सी ,
कहीं कोई दरिंदा न लुट ले उसके आबरू की गरमाइश भी ।
क्या यही हैं सम्मान ओ नारी तेरा ,
क्या इसी लिए तु धरा पर आयी थी ?
निकली जो घर से सलवार कमीज़ पहन कर तो ,
कमर छाती नाप लेते हो ।
साड़ी पहन कर अगर निकले तो ,
नाभि की गहराई बताते हो ।
कमीज़ का बटन हो अगर ढीला तो ,
उसमें झांक ब्रा का रंग बताते हो ।
अगर स्कर्ट हो थोड़ी छोटी तो ,
रूक रूक कर तुम जांघें देखते हो ।
हर नारी को अपना निजी धन समझते हो ,
देख रंग – रूप – आकार उसकी पवित्रता को दर्शाते हो ।
हे नर ! पहले ये तो बताओ ,
क्या तुम घर जाकर खुद नारी बन जाते हो ?
जिस छाती का दूध पिया तुमने ,
उसे भूल क्यों दुसरे की छाती रौंध आते हो ?
जिस कोख से जन्म लिया तुमने ,
फिर उसी कोख को क्यों उजाड़ जाते हों ?
एक क्षण की खुशी के लिए ,
उसकी सारी जिंदगी शमशान बना जाते हो ।
हे नर ! क्या तुम इतने भुखे हो कि ,
घर की एक नारी के नहीं हो सकते हो ?
अगर हो गई घटना कोई ,
सबकी नज़र नारी पर छाई रहती है ,
कभी कुलकर्णी , कभी रनडी , कभी वैश्या कहीं जाती है ।
उसके शरीर से बढ़कर कभी किसी को वो भाए नहीं ,
अपने मर्जी से किसी की हवश अगर वो मिटाई तो ,
सबके लिए चरित्रहीन कहलाई वो ।
अगर जबरदस्ती की शिकार हुई तो ,
बलात्कार पीड़ित कहलाई वो ।
दोनों ही स्थितियों में खुद को एक समान पाई वो ,
कभी दुर्गा , कभी निर्भया कहलाई वो ।
क्या यही है नारी सम्मान ?
या है ये अपमान !
ज्योति
(16 दिसम्बर 2012 में बसंत विहार बस गैंगरेप हुआ )
नई दिल्ली