सिय का जन्म उदार / माता सीता को समर्पित नवगीत
निर्मलता का
वरद उद्धरण
सिय का जन्म उदार ।
ज्ञान,विराग,
प्रेम के अंचल,
खेला बचपन
प्रमुदित चंचल ।
मात सुनयना,
पिता जनक के
आँगन का संसार ।
पति चरणों में
अनुरक्ता की
कंटक भरी
युवावस्था थी ।
राजमहल से
वन-वन बिखरा
था,करुणामय प्यार ।
नारि-अस्मिता
के गौरव पर,
पति के मर्यादित
अनुभव पर ।
उठा लिया
परित्यक्ता बनकर
अग्नि-परीक्षा-भार ।
पुरुष-प्रधान
देश में नारी,
शोषित,पतिता
औ’ बेचारी ।
उक्त लांछनों
से सिय का भी
जीवन रहा शिकार ।
निर्मलता का
वरद उद्धरण
सिय का जन्म उदार ।
००
— ईश्वर दयाल गोस्वामी ।