सिया स्वयंवर अद्भुत रस
प्रदत्त रस:- अद्भुत रस
विषय: – स्वैच्छिक ( धनुष यज्ञ)
विधा :- गीत (१६/१४)
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राज्य-राज्य से भूप बुलाये, आये सब बारी – बारी।
सिया स्वयंवर जनकपुरी में, उत्सव कितना है भारी।।
भूप जनक ने शर्त है रखी, शिव धनुहीं जो तोड़ेगा।
वैवाहिक संबन्ध सखे वह, आज सिया से जोड़ेगा।।
जनकपुरी की छटा अलौकिक, आज लगे अनुपम न्यारी।
सिया स्वयंवर जनकपुरी में, उत्सव कितना है भारी।।
राम लखन भी सिया स्वयंवर, गुरू सहित देखन आये।
राम लखन को जनकपुरी में, विश्वामित्र ही थे लाये।।
शिव धनुही जो भी तोड़ेगा, सिया वरण वह अधिकारी।
सिया स्वयंवर जनकपुरी में, उत्सव कितना है भारी।।
गुरुजनों ने किया आदेशित, स्वयंवर शुभारंभ हुआ।
हुये चूर थे दर्प सभी के, जिनको- जिनको दंभ हुआ।।
भूप सभी थे हारन लागे, एक- एक कर बारी बारी।
सिया स्वयंवर जनकपुरी में, उत्सव कितना है भारी।
रामलला ने तोड़ी धनुही, देख सभी थे दंग हुये।
बाल रूप भगवंत को देखा, दंभ सभी के भंग हुये।।
तोड़ शरासन खड़े सियावर, रूप प्रभु की मनोहारी।
सिया स्वयंवर जनकपुरी में, उत्सव कितना है भारी।।
✍️पं.संजीव शुक्ल ‘सचिन’
पूर्णतः स्वरचित, स्वप्रमाणित , मौलिक रचना