सिया राम विरह वेदना
ऋतु बसंत नभ मेघ गरजते, वसुधा पर रचि हरि माया
तरु आसीन ओट धरि जननी, उद्विग्न हृदय रघुराया
मेघ दृश्य चक्षु प्रस्त्रवण सम, करे घोर धर वर्षा
कृपानिधि, सिंधु सुता, देखी दोनों की विरह दशा
विवर विभूति द्वार पर, प्रहरी शेषनाग अवतार
अवलम्ब शैल, स्फुटिक शिला पर, बैठे पालन हार
छोटी छोटी सरिता बढ़ चली, बड़ी भरे उफान
मद मस्त गजानन तुरि तट, नहि परिधि का भान
धूमिल हो गए जल जयमाला, योग्य कहा जल पान
कछु माया उच्छल कनिष्ठ नद, क्षणिक समय समान
उच्च कोटि नीरव रस बरसे, तृण रंग धरा संसार
अवलम्ब शैल, स्फुटिक शिला पर, बैठे पालन हार
जरत बदन सम रवि के तुला, गहन शोक मनि चुभि शूला
धरा परत गिरी छवि अनूपा, नभ सारंग छिपी भानु भूपा
अन्न जल ग्रहण त्यागी बैदेही, हृदय जड़ित पति अवध स्नेही
डूबे उतरे जलनिधि जेही, लिपटे जीव जल ढाबर तेही
भव सागर मम उद्धार करि, उर बसे राम आधार
अवलम्ब शैल, स्फुटिक शिला पर, बैठे पालन हार
दादुर पपीहा किकर निसि दिन, छोड़े करकस बान
सारंग शीतल बूंदें जारे, तन फफूद उग तृण समान
कछुक दिवस धीरज धरि, लखन राम रणधीर
कहि कोकिल सीतहि पहि, आयेंगे रघुवीर
शत योजन सिंधु करि पारा, देब संदेश तोहार
अवलम्ब शैल, स्फुटिक शिला पर, बैठे पालन हार
आवत बीत गए चहू मासा, कोकिल आई सरोरूर पासा
तन पाषाण मन अति कासा, पनपे हृदय घोर निराशा
मधुर ध्वनि करुणा निधान सम, करुण संदेश सुनाया
विरह वेदना आधार तुम्ही बस, रटत नाम रघुराया
सकल कनक शोभित भई, करि राम नाम श्रृंगार
अवलम्ब शैल, स्फुटिक शिला पर, बैठे पालन हार
जातुधान सम कक्ष होई, देती कोटि के वाद
जनक नंदनी रघु बीन, अर्चि बीन धूमिल चांद
सुमन सुगंध पवन निधि, देहू सियहि संदेश
शत योजन दक्षिण दिसि, जहां बसे लंकेश
शीघ्र संदेशों पठाईयों, रमा प्रिया भुज चार
अवलम्ब शैल, स्फुटिक शिला पर, बैठे पालन हार
इंजी.नवनीत पाण्डेय सेवटा (चंकी)