“सिया का राम को हृदय संदेश”
नयन झुक गये बोल रुक गये
तुम्हें देख मैं हुई हूँ निःशब्द ।
कैसे करूं मैं प्रेम प्रदर्शित
राम सम्मुख सिया है स्तब्ध ।
अप्रतिम पावन सौन्दर्य शिखर
नयनाभिराम पौरूष दर्शित।
हृदय मंदिर के तुम स्वामी
स्नेह करुणा की तुम मूरत।
सदा से तुम्हीं मेरा प्रारब्ध
राम सम्मुख सिया है स्तब्ध।
जन्म जन्मांतर से तुम मेरे
और रही मैं सदा तुम मय।
उरवीणा के झंकृत स्वर में
नाम तेरा गाती है हर लय।
राम बिन न सिया का अस्तित्व
राम सम्मुख सिया है स्तब्ध।
तुम से है प्रेम निवेदन मेरा
स्वयंवर में उठाओ धनुष-बाण।
मेरी वरमाला तुम्हें समर्पित
वरण किया तुम को मन- प्राण।
राघव बिन सिय कहीं नहीं है
है निर्जीव निष्प्राण निस्तब्ध
राम सम्मुख सिया है स्तब्ध।
नयन झुक गये बोल रुक गये
तुम्हें देख मैं हुई हूँ निःशब्द ।
कैसे करूं मैं प्रेम प्रदर्शित
राम सम्मुख सिया है स्तब्ध।
रंजना माथुर
अजमेर (राजस्थान )
मेरी स्व रचित व मौलिक रचना
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