सियासत में आकर।
हम सोचते थे सियासत में आकर वह कुछ काम करेंगें।
अपने असर से दो-चार रियासतें शहर की मेरे नाम करेंगें।।1।।
निज़ाम गर आया इस बार उनकें हाथों में इस वतन का।
गरीबों के लिए कुछ ख़ास पुख़्ता इंतिज़ाम करेंगें।।2।।
वह रहता है हक-ए-ईमान पर आवाम की ख़ातिर।
उसको पता है फिर भी कुछ लोग उसे बदनाम करेंगें।।3।।
उसने भी भर दिया पर्चा इस बार सदर के चुनाव का।
उसको लगता है कि लोग उसके हक में मतदान करेंगें।।4।।
माना सियासत करना ऐसे वैसों लोगों का काम नहीं।
पर हम सब मिल कर अपने वतन को एक मुकम्मल हिंदुस्तान करेंगें।।5।।
तुम सब अक़ीदा बना कर रखना बस उसकी जात पर।
बाकी करने को क्या है सब ही यहाँ प्रभु श्री राम करेंगें।।6।।
मेहनत करके वह अपने बच्चों को अच्छी तालीम दिला रहा है।
देखना यही बच्चें आगे जाकर उसका बड़ा नाम करेंगें।।7।।
ना जानें उसको क्या है पड़ी उनकी जिंदगानियों को संवारने की।
वो करले कुछ भी इनके लिए ये फिरसे वही बुरे काम करेंगें।।8।।
मुद्दतों बाद खबरे आयी है हवेली में खुशियों की बनके सौगात।
शाम-ए-महफ़िल में यहाँ हर सम्त आज ज़ाम पर ज़ाम चलेंगें।।9।।
कौन कहता है उसको कोई फ़िकर नहीं तुम्हारी ज़िंदगी की।
वसीयत में वह अपना सब कुछ बस तुम्हारें ही नाम करेंगें।।10।।
मत होने देना गंदा तुम इनके कोरे-कोरे जहनों को ताज।
वरना अपनें ही वतन में ये अपनों का कत्ले-आम करेंगें।।11।।
ताज मोहम्मद
लखनऊ