सियासत का नशा
सियासत वोह नशा है ,
जो सबके सिर चढ़कर बोलता है ।
यह वोह दलदल है ,
जहां हर कोई मैला हो जाता है ।
कौन है यहां पाक दामन ? यह बताओ !
अजी जनाब ! यह वोह जगह है,
जहां सबका ईमान बदल जाता है ।
कल तक जो कहते थे ,
हम सियासत करने नही आए,
देश सेवा ,जनता की सेवा करने आए है ।
वोह भी छ्टे हुए नेताओं की भाषा बोलने लग गए ,
सीधे साधे आम इंसान थे जो कभी ,
बड़े दाव पेच चलाने लग गए ।
बनाकर आम आदमी हेतु पार्टी ,
आम जनता को परस्पर लड़वाने लग गए ।
वोह इस राह पर क्या आए ,
पूरी तरह से बदल गए ।
क्या करें भई ! सियासत का नशा ही कुछ ,
ऐसा होता है ।