सिद्धार्थ बुद्ध की करुणा
बचपन में सिद्धार्थ गौतम,
वन उपवन में रमे हुए थे,
ध्यान लगाकर बैठे रहते,
संसारिक जीवन अनुभव करते।
तभी अचानक हंस आ गिरा,
घायल अवस्था में समीप,
देखा न गया दर्द उसका,
करुणा से भर गया हृदय तभी।
हंस को बाण लगा हुआ था,
निकाल बाण धोये उसके पीर,
इसी बीच में आया चचेरा भाई,
देवदत्त जिसने मारा था तीर।
अधिकार ज़माने लगा वह अपना,
मेरा शिकार है हक़ मेरा है इसमें,
जल्दी दे दो भाई सिद्धार्थ मुझे हंस,
अच्छा धनुर्धर हुआ हूँ मैं सिद्ध।
सिद्धार्थ बुद्ध के रूप में बोले,
ध्यान रखो भ्राता मेरी एक ही बात,
मारने वाले से होता बचाने वाला बड़ा,
हंस पर मेरी करुणा बरस गई।
शुद्धोधन ने जब ये जाना,
देवदत्त सत्य को नहीं है माना,
निर्णय करने को हंस पर छोड़ा,
सिद्धार्थ और देवदत्त दोनों ने पुकारा।
सुनकर पुकार करुणामयि मृदु आवाज,
सिद्धार्थ के समीप उड़ चला हंस राज,
प्राणो की रक्षा की थी जिसने,
वहीं है बुद्ध के शिक्षा का एक शील।
दया करुणा और अहिंसा करना,
अकारण जीव हत्या से बचना,
शांति मार्ग पर है चलना,
बुद्ध सरण में अब तुम भी बढ़ना।
रचनाकार-
बुद्ध प्रकाश,
मौदहा
हमीरपुर।