सितम ढा गई
***सितम ढा गई (गजल) ****
बह्र:- 122 122 122 12
रदीफ़-गई,क़ाफ़िया-आ,भा,छा,
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सजा प्यार की है सितम ढा गई,
खुशी की घड़ी शोक में छा गई।
बयारें चली है यहाँ झूमती सी हुई,
सुहानी हवा शीत भी भा गई।
मुसीबत सभी को सदा है सताती,
जफ़ा तन बदन को लगे खा गई।
सुनो तो सही दिल बता कुछ रहा,
घटा प्रेम की है विभा आ गई।
दुआ का असर देखते तुम रहो,
दवा लाभ सीरत भला पा गई।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)