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4 Feb 2024 · 1 min read

संशय ऐसा रक्तबीज है

संशयात्मा के विनाश का, सूत्र मोद मन में भरता है।
संशय ऐसा रक्तबीज है, जो न मारने से मरता है।।

कैकेयी अम्बा के उर का, संशय वन भेजता राम को।
वनवासी हो जाने पर ही, ख्याति अपरिमित मिली नाम को।।
ग्लानिग्रस्त होता अन्तस जब, संशय दूर हुआ करता है।
संशय ऐसा रक्तबीज है, जो न मारने से मरता है।।

संशयात्मा स्वयं त्रास सह, त्रास अन्य को भी देते हैं।
माॅं सीता की अग्नि परीक्षा, संशयग्रस्त राम लेते हैं।।
एक रजक के उर का संशय, वैदेही के सुख हरता है।
संशय ऐसा रक्तबीज है, जो न मारने से मरता है।।

सीता भले विपिन में थीं पर, प्रभु की प्रीति न रंच हिली थी।
अश्वमेध में उनकी प्रतिमा, को ही उनकी जगह मिली थी।।
संशय का दोषी मन ही मन, अपने से रहता डरता है।
संशय ऐसा रक्तबीज है, जो न मारने से मरता है।।

महेश चन्द्र त्रिपाठी

Language: Hindi
Tag: गीत
55 Views
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