सिगरेट की मोहब्बत
चूम कर मेरे पैरों को,
मेरे सिर को आग लगा दिया ।
थाम कर मुझको हाथों में,
मेरे ज़िस्म को राख बना दिया ।।
उतार कर साँसों में मेरा नशा ,
मेरे हुश्न को धुँआ बना दिया ।
हर कश में लेकर मजा जमाने ने,
मेरे वजूद को पैरो से रगड़ कर मिटा दिया ।।
बेरहम दुनियां ने मुझको,
दीवाने का जहर बना दिया।
जब कुछ ना मिला वेवशी में,
तो मुझको ही जला दिया ।।
जवानी का जोश, दिल का दर्द लेकर,
किसी ने नशा तो किसी ने दवा बना लिया ।
बिठाकर मुझे अपने लबों पर,
लोगों ने जीने का अंदाज बदल लिया ।।
उनकी मोहब्बत में, मैं धुँआ-धुँआ होती रही,
उँगलियों को थामकर होठों तक हर बार आती-जाती रही ।
फ़ना कर दिया मैंने अपने ज़िस्म को,
मैं राख होती रही और उनको मजा देती रही ।।