सिखलाई
जब तक ठोकर लगती नही, तब तक कुछ सीखना मुश्किल है।
जब तक हम हार नहीं माने, तब तक नही जीतना मुश्किल है।
है मुश्किल पर नामुमकिन नही, लाँघना पर्वत के ऊँचाई का।
बिन सीखे निरर्थक जीवन है, है मोल सदा सिखलाई का।
जब तक हम न ज़ख़्मी होंगे, हम विकसित नहीं हो पाएँगे।
जब तक असफल ना होवें, तब तक कुछ सीख न पाएँगे।
दम है कितना पता लगे, जब बात हो जोर आजमाई का।
बिन सीखे निरर्थक जीवन है, है मोल सदा सिखलाई का।
जीवन की प्रतिक्रिया यही है, जीवन का अभिप्राय यही।
हम तभी सीख पाएँगे जब, होगा दर्द का अहसास कही।
भला कुवें का मेढक क्या जाने, सागर की गहराई का।
बिन सीखे निरर्थक जीवन है, है मोल सदा सिखलाई का।
©® पांडेय चिदानंद “चिद्रूप”
(सर्वाधिकार सुरक्षित ११/११/२०१८ )