सिंदूरी शाम
सिंदूरी शाम
थककर है आया
देख सूरज
सांझ की बांहों में,
शर्म से हो गई
सांझ सिंदूरी।
भोर बोली
कि सूरज
मेरा है
पास तेरे आना
बस है मजबूरी।
कुछ नहीं
बोली भोली
सांझ सुबह से।
बांहों में
सूरज की
वो तो खोली।
मिले जब
दिल दो तो
न रही दूरी।
भूली फिर
सब कुछ
सांझ सिंदूरी।
नीलम शर्मा