सिंदूरी प्रेम
उसने आंखों में झाँका था, उसकी भी अलग कहानी है ।
लफ्जों की उन खामोशी की, मन में जंग जारी है।
दिल में जो शब्द है, होठों पर आना बाकी है।
खामोशी की इन गुपचुप को, गीतों में ढलना बाकी है ।
कुछ तो उसने सोचा है, उंगलियों को कुछ तिरछा मोड़ा है ।
कुछ ख्याल तो दिल में आया है ,जुल्फों को पीछे छोड़ा है ।
बातें कुछ आगे बढ़ती हैं, दिल की धड़कन धक -धक करती है ।
आंखों में आंखें डाली है ,शर्मा के नजरें चुरा ली है ।
दिल थाम के मैंने बोला है, तेरा मुझको होना है।
यह इत्तेफाक ना ऐसा होना है, मेरे हाथों में तेरे नाम का
अक्षर ऊपर वाले ने जोड़ा है।
वह होंठो को सुकड़ा के कहती है, चूड़ियां मेरी हर पल आपके
ख्याल में खनकती रहती है ।
आपकी यादें मुझे सताती है ,आप की दुल्हन बनने की
आश मन में जगती हैं।
मेरा सब कुछ तुम्हारा है ,
आपको बस मेरे माथे पर सिंदूर सजाना है ।
लाल साड़ी मुझे पहनना है,
मेरी डोली आपको ले जाना है।
तेरे हाथों को हाथों में लेकर वादा करता हूं,
अग्नि को साक्षी मानकर प्रण ये भरता हूं ।
तेरे घर बारात लाऊंगा,
लाल चुनरी उड़ा के अपनी दुल्हन तुझे बनाऊंगा।
हर्ष मालवीय
बीकॉम कंप्यूटर फाइनल ईयर
शासकीय कला एवं वाणिज्य हमीदिया महाविद्यालय
बरकतउल्ला विश्वविद्यालय भोपाल