सिंगार जब करती
सिंगार जब करती , आयना दुबकता है
उतर जमीं पर ये चाँद , आह भरता है
दिखे मुझे वह जैसे , हो अप्सरा सी कोई
जरा नजर भर देखूँ ,तो दिल मचलता है
बना है आशिक तेरा , न भूल पाये अब
ये रात दिन बस केवल , तुझे ही भजता है
नही पता मुझसे आज , वो रूठी क्यों है
उसे मना कर जी लूँ , जिया तड़पतां है
ये दिल नहीं लगता , जो न पास तू होती
विरह में व्याकुल दिल , याद में सुलगता है