साहिल की रेत
साहिल की रेत जैसे
भीगे भीगे से हम।
बस कुछ नमी
और
छोड़े गए कदमों के निशान।
कैसे अलग करूं
उन कदमों को जो
पहुंच गये थे
दिल तक।
और अचानक जैसे
एक लहर के आने से
सब खो गया
रह गई यादें
और भीगी हुई रेत
जिस से कभी घरौंदा
बनाया करते थे हम।
लेकिन हर बार
लहरों ने घरौंदा तोड़ा
बेजान सा हमें छोड़ा
बस साहिल पर भीगी
रेत से हम
सुरिंदर कौर