Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
31 Mar 2019 · 2 min read

साहित्य और सावन

कजरारी काली घटाएं… उमड़ते घुमड़ते बादल…. रिमझिम बुंदियां…..
भीना भीना मौसम…..
सावन शब्द ही अपने आप में बड़ा मनभावन है। मन का सम्बन्ध भावों से और भाव तो साहित्यकार का प्राण है।

हिन्दी भाषा के साहित्यकारों ने श्रावण मास को एक ओर तो पावन मास के रूप में चित्रित किया वहीं दूसरी ओर प्रेम प्रीति के सौन्दर्य से सराबोर
प्रेम व विरह के विरोधाभास लिए उजाले अंधेरों की अद्भुत
शब्द लड़ियां पिरो कर सुन्दर सृजन मालाएँ सजाई हैं।

हमारे साहित्यकारों ने सावन को अभूतपूर्व रूप देकर उसका महिमा मंडन अति काव्य चातुर्य का परिचय दिया है।
यह खुशनुमा मौसम साहित्यकारों व कवियों की कलम को दीवाना बना देता है। साहित्य तो मानों इस ऋतु का सबसे बड़ा गवाह है जिसने शब्दों के माध्यम से मौसम के मिजाज को जन जन में व्याप्त किया है, सरोबार किया है।

हिन्दी साहित्य का कोई भी युग ले लीजिए
चाहे वह तुलसीदास मीरा, , कबीर, सूरदास , जायसी आदि कवियों का मध्ययुग हो जिन्होंने पावस ऋतु का सुंदर और सरस चित्रण किया है या आधुनिक हिन्दी साहित्य के जयशंकर प्रसाद, सुमित्रानंदन पन्त , सूर्यकांत त्रिपाठी निराला, या महादेवी वर्मा जैसे छायावादी कवि श्रावण ऋतु या रिमझिम बारिश की फुहारों में न भीगे हों।

महादेवी वर्मा बोलती हैं-
“नव मेघों को रोता था
जब चातक का बालक मन,
इन आँखों में करुणा के
घिर घिर आते थे सावन”

सुमित्रानंदन पंत के सावन को देखिए-
“ढम ढम ढम ढम ढम ढम
बादल ने फिर ढोल बजाए।
छम छम छम छम छम छम
बूँदों ने घुंघरू छनकाए।”

रामधारी सिंह दिनकर वैसे वीर रस के कवि के रूप में में विख्यात थे। वे भी सावन की छटा से न बच सके-
“जगती में सावन आया है,
मायाविनि! सपने धो ले..”

इनसे आगे बढ़ें तो दृष्टिगत होता है कि वर्तमान समय के सुप्रसिद्ध व नामचीन लेखक व कवि भी सावन की ठंडी ठंडी बुंदियों की बौछारों से बचने न पाए हैं।

हरिवंश राय बच्चन की रचना –
“यह पावस की सांझ रंगीली
आज घिरे हैं बादल, साथी।”
तो गुलज़ार साहब फरमाया रहे हैं –
“बारिश आती है तो मेरे शहर को कुछ हो जाता है”

गोपालदास नीरज कहते हैं – “यदि मैं होता घन सावन का
पिया पिया कह मुझको भी पपिहरी बुलाती कोई,”

निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि सावन ऋतु सदियों से कवियों व रचनाकारों का एक स्वर में सर्व प्रिय विषय रहा है और भविष्य में भी रहेगा।

रंजना माथुर
अजमेर (राजस्थान )
मेरी स्व रचित व मौलिक रचना
©

Language: Hindi
Tag: लेख
1140 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
अगर आप समय के अनुसार नही चलकर शिक्षा को अपना मूल उद्देश्य नह
अगर आप समय के अनुसार नही चलकर शिक्षा को अपना मूल उद्देश्य नह
Shashi Dhar Kumar
जब तक हो तन में प्राण
जब तक हो तन में प्राण
अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'
तेरी ख़ामोशी
तेरी ख़ामोशी
Anju ( Ojhal )
वक़्त के साथ
वक़्त के साथ
Dr fauzia Naseem shad
"तेरी यादें"
Dr. Kishan tandon kranti
तुम याद आए
तुम याद आए
Rashmi Sanjay
शायर तो नहीं
शायर तो नहीं
Bodhisatva kastooriya
प्रहरी नित जागता है
प्रहरी नित जागता है
हिमांशु बडोनी (दयानिधि)
न तोड़ दिल ये हमारा सहा न जाएगा
न तोड़ दिल ये हमारा सहा न जाएगा
Dr Archana Gupta
जवान वो थी तो नादान हम भी नहीं थे,
जवान वो थी तो नादान हम भी नहीं थे,
जय लगन कुमार हैप्पी
ख्वाबों के रेल में
ख्वाबों के रेल में
Ritu Verma
कविताएँ
कविताएँ
Shyam Pandey
जल बचाओ, ना बहाओ।
जल बचाओ, ना बहाओ।
Buddha Prakash
*अज्ञानी की कलम*
*अज्ञानी की कलम*
जूनियर झनक कैलाश अज्ञानी झाँसी
ग़ज़ल सगीर
ग़ज़ल सगीर
डॉ सगीर अहमद सिद्दीकी Dr SAGHEER AHMAD
पश्चाताप का खजाना
पश्चाताप का खजाना
अशोक कुमार ढोरिया
मैंने जला डाली आज वह सारी किताबें गुस्से में,
मैंने जला डाली आज वह सारी किताबें गुस्से में,
Vishal babu (vishu)
आत्मरक्षा
आत्मरक्षा
Dr. Pradeep Kumar Sharma
2909.*पूर्णिका*
2909.*पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
अखंड साँसें प्रतीक हैं, उद्देश्य अभी शेष है।
अखंड साँसें प्रतीक हैं, उद्देश्य अभी शेष है।
Manisha Manjari
रूह बनकर उतरती है, रख लेता हूँ,
रूह बनकर उतरती है, रख लेता हूँ,
नील पदम् Deepak Kumar Srivastava (दीपक )(Neel Padam)
Really true nature and Cloud.
Really true nature and Cloud.
Neeraj Agarwal
बिन चाहें तेरे गले का हार क्यों बनना
बिन चाहें तेरे गले का हार क्यों बनना
Keshav kishor Kumar
यह प्यार झूठा है
यह प्यार झूठा है
gurudeenverma198
जय संविधान...✊🇮🇳
जय संविधान...✊🇮🇳
Srishty Bansal
आया नववर्ष
आया नववर्ष
विनोद कृष्ण सक्सेना, पटवारी
#मुक्तक-
#मुक्तक-
*Author प्रणय प्रभात*
गुलामी छोड़ दअ
गुलामी छोड़ दअ
Shekhar Chandra Mitra
"पँछियोँ मेँ भी, अमिट है प्यार..!"
Dr. Asha Kumar Rastogi M.D.(Medicine),DTCD
तलाश हमें  मौके की नहीं मुलाकात की है
तलाश हमें मौके की नहीं मुलाकात की है
Tushar Singh
Loading...