साहित्य और समाज
हम सभी जानते हैं कि साहित्य समाज का दर्पण होता है ! साहित्य के बिना समाज की कल्पना करना निरर्थक है ! साहित्य से ही समाज का निर्माण होता है एवं समाज की कुरीतियों का विनाश न होता अगर साहित्य न होता , तो समाज की कुरीति राजनीतिक कुरीति का विनाश भी नहीं होता ! साहित्य समाज को रास्ता दिखाता है किस रास्ते से समाज को चलना चाहिए ! राजनीतिक को भी गिरने से साहित्य ही बचाता है वरना साहित्य नहीं होता तो आज की राजनीतिक और कचरा हो गई होती ! साहित्य के बिना समाज की कल्पना नहीं की जा सकती है ! वर्तमान में समाज में जितने कुरीतियां हो रही है वह साहित्य के अनदेखा मे ही हो रहा है समाज से ही साहित्य का उदय होता है और साहित्य से ही समाज का उदय होता क्योंकि साहित्य समाज का दर्पण है मेरी कविता ~~~
समाज को साहित्य का मिला है सहारा ,
भला उनको कचड़े से बचाओगे कब तक ?
जो मिलते हृध्य से मिलते रहेगे ,
भला उनको उनसे छूड़ाओगे कब तक ?
प्यारे प्योधी मे रहते हमेशा ,
भला उनको रास्ता दिखाओगे कब तक ?
आजीवन अकेला – अकेला ही रहते ,
समाज को साहित्य से मिलाओगे कब तक ?
सिनेमा राजनीतिक हमेशा ऊलझते ,
भला उनको समझाओगे कब तक ?
समाज को साहित्य हमेशा उठाते रहते ,
वरना वर्तमान समाज कहाँ कहाँ गिरते ?
~ रूपेश कुमार