साहित्यपीडिया तेरा आभार
साहित्य जग के भटके, भौरों का आधार।
बाग साहित्यपीडिया, हो तेरा आभार।।
हो तेरा आभार बनें अब पत्थर हीरे,
जैसे बदले रंग देख खीरे को खीरे।
अब न रहता मलाल मिला है पटल औचित्य,
होगा “चिद्रूप” उज्वल हिंद व हिंदी-साहित्य।।
©® पांडेय चिदानंद “चिद्रूप”
(सर्वाधिकार सुरक्षित २०/११/२०१८ )