साहस
3 नवंबर सन 1947 को
मेजर सोमनाथ शर्मा की टुकड़ी
बदनाम मोर्चे पर जाने को तैयार
किया मेजर ने ललकार
डरो नहीं हथियार उठाओ !हथियार उठाओ!
दुश्मन के होश उड़ाओ!
उनके दाएं -बाएं ओर तोपें
उगलती आग गर्जना के साथ
उनके गोलियों का सामना करते हुए सैनिक
बहादुरी से आगे बढ़े
मौत के जबड़ों में,मौत के मुंह में
जो खूब लड़े बखूबी लड़े
पांच सौ सैनिक उन्हें घेरे खड़े
कई सैनिक वीरगति को प्राप्त हुए
मेजर भी बाएं हाथ से चोटिल हुए
पर गोलियां भरकर सैनिकों को देते रहे
अंतिम समय तक सैनिकों का हौसला बढ़ाते रहें
दुर्भाग्य से एक मोर्टार का निशाना बने
एक नया इतिहास लिख सन्नाटे में खो गए
वीरता व साहस से शत्रु के छक्के छुड़ाते रहे
भारत के लाल शहीद हो गए
अपने शौर्य और साहस के लिए
प्रथम परमवीर चक्र विजेता बने
शहीद हुआ जो धरती के लिए
गुल बनकर वह सदा महकेंगे
युगों-युगों तक पूजे जाएंगे।