साहस का सच
मनीषा ने विश्वेश्वर सिंह को जो जी मे आया जली कटी सुनाते हुए जाते जाते गंभीर एव मजाकिया अंदाज में बोली मैं एक सप्ताह के लिए कोप भवन में जा रही हूँ जब मिलने का मन करे तो फोन घुमा देना मैं भी तो देंखु ठाकुर विश्ववेशर कि साधना योग और चली गयी ।
समान पैक किया और शार्दुल विक्रम सिंह के पास पहुँची और बोली मुझे मम्मी से मिलना है शार्दुल विक्रम सिंह का बड़ी विनम्रता से पैर छुआ जैसे ऊंचे खानदान की बहुएं अपने से बड़ो का आशीर्वाद प्राप्त करती है।
शार्दुल विक्रम ने पूछा बेटी आप कौन हो ?मनीषा बोली डैडी मैं आपको नही बता सकती मैं कौन हूँ ?मैं मम्मी को ही बता सकती हूँ शार्दुल विक्रम सिंह बोले बेटी मेरी कोई बेटी नही है मनीषा बोली डैडी आप मुझे बेटी कह भी रहे है और कहते है आपकी कोई बेटी नही है शार्दूल विक्रम सिंह को मन ही मन क्रोध आ रहा था लेकिन मनीषा की मासूमियत भवनाओं कि गहराई अपनेपन का एहसास चाह कर भी शार्दुल विक्रम सिंह रूखा व्यवहार नही कर पा रहे थे मनीषा के साथ ।
मनीषा बार बार मम्मी काव्या से मिलने के लिए जिद कर रही थी थक हार कर शार्दुल विक्रम सिंह ने काव्या को बुलाया ज्यो ही काव्या आयी मनीषा ने ठिक वैसे ही पैर छुआ जैसे उसने ठाकुर शार्दुल विक्रम सिंह के बड़े खानदान कि बेटी बहुओं की तरह काव्या संवेदन शील नारी भाव चेतना थी और स्वंय उन्होंने आक्स्पोर्ट में शार्दुल से पढ़ते समय ही प्यार किया था और वैवाहिक जीवन मे सुखी एव संतुष्ट थी ।
काव्या ने पूछा बेटे आप रहने वाले कहां के हो मनीषा ने बताया उदय पुर राजस्थान तुरंत ही काव्या के मस्तिष्क पर एक झटके में उदय पुर की मनीषा जिंदल की तारीफ विश्ववेशर की जुबानी याद आ गयी वह बोली बेटी तू तो एम्स में पढ़ती हो तुम अकेली कैसे आयी विश्ववेशर क्यो नही आया ?
मनीषा बोली मम्मी यही तो बताने आयी हूँ कि आपके लाडले ने मुझे बहुत रुलाया दर्द दिया है हम आपके पास शिकायत नही करेंगे तो किसके पास जाएंगे शार्दुल विक्रम सिंह काव्या और मनीषा के बीच हो रहे वार्तालाप को सुन कर आश्चर्य में थे कि काव्या कब मनीषा से मिली ये दोनों तो ऐसे मिल कर बात कर रही है जैसे एक दूसरे को वर्षो से जानती है।
शार्दुल विक्रम सिंह ने पूछ ही लिया काव्या से तुम इस लड़की को कितने दिनों से और कैसे जानती हो ?काव्या बोली जन्म से शार्दुल विक्रम सिंह को लगा उनके पैर से जमीन ही खिसक गई बोले क्या कह रही हो होश में तो हो ?काव्या बोली मैं होश में हूँ आप बेहोश हैं आपको यह अंदाजा ही नही की आपकी औलाद कब जवान हो गई उसके भविष्य विवाह के विषय मे भी सोचना चाहियें ।
ये मनीषा है और इससे मैं पहली बार ही मिल रहा हूँ लेकिन तुम्हारे लाडले विश्वेश्वर के हृदय भाव से उठते भावों को उसके शब्दो और नज़रों में बहुत स्प्ष्ट सुनती देखती आ रही हूँ तबसे जबसे ये एक दूसरे से मिले है ।
ये यहां इसलिये आयी है क्योंकि यह विश्वेश्वर से प्यार करती है विश्वेश्वर भी दिल की गहराईयों से इसे चाहता है इसने अपने चाह राह प्यार को स्प्ष्ट व्यक्त कर दिया और आपके साहबजादे शराफत के लिबास एव राजवंश के आचरण कि खाल ओढ़े हुये आपके आदेश की प्रतीक्षा कर रहे है ।
शार्दुल विक्रम सिंह को पूरा माजरा समझ मे आ गया बोले बेटी तुम मम्मी के साथ अंदर महल में जाओ फौरन उन्होंने मनसुख को बुलाया और आदेशात्मक लहजे में बोले तुरंत रमन्ना को साथ लेकर अपनी राज शाही कार से दिल्ली जाओ और विश्ववेशर को साथ लाओ
मनसुख एव रमन्ना राजशाही कार फोर्ड लेकर दिल्ली के लिए निकल पड़े इधर काव्या ने सारे सेवको को मनीषा का ध्यान एव खातिर दारी में तैनात कर दिया।
मनीषा जैसे बाबुल के घर से विदा होकर ससुराल आयी हो मनीषा को भी अच्छा लग रहा था काव्या उंसे राज परिवार के रीति रिवाजों को फुरसत निकाल कर समझाती रहती औऱ बेटे विश्ववेशर की वो खास खासियत खास बातें बताती जो मनीषा की नज़र समझ से बचे हुए थे ।
मनीषा को क्लास आये पूरे तीन दिन हो चुके थे प्रोफेसर रानिल कपूर ने विश्ववेशर से पूछ ही लिया मनीषा पिछले तीन दिनों से क्लास नही आ रही है क्यो नही आ रही है ?
इसका जबाब सिर्फ तुम ही दे सकते हो विशेश्वर बोला नो सर मुझे नही मालूम वह कहाँ है?
उसने मुझे बताया भी कुछ नही हैं प्रोफेसर कपूर ने कहा कोई बात नही एक दो दिन और देखते है नही तो के सी से बात करेंगे के सी बोले तो करम चंद जिंदल मनीषा के डैड क्लास छूटा ज्यो ही बाहर विश्ववेशर निकला मनसुख एव रमन्ना ने राज शार्दुल विक्रम का फरमान सुनाया और बोले आपको तुरंत राजा साहब ने बुलाया है ।
विश्ववेशर ने पूछा कोई खास बात कोई बीमार या गम्भीर है या कोई विषम परिस्थिति है मनसुख बोला नही फिर भी आपको अबिलम्ब साथ चलना होगा विश्वेश्वर कॉलेज को सूचित करके मनसुख रमन्ना के साथ चल पड़ा।
जब वह घर पहुंचा सबसे पहले डैड शार्दुल विक्रम सिंह से आशीर्वाद लिया और बोला डैड क्या खास बात हो गयी?
आपने एका एक आदमी भेज कर बुलवाया विधेश्वर सिंह कुछ नही बोले उन्होंने मनसुख को इशारे ही इशारे में मनीषा को बुलाने की बात कही सब पूर्व निर्धारित था कि विश्ववेशर के आने पर क्या क्या किस तरह से होना है मनसुख के साथ मनीषा बाहर आई विशेश्वर ने मनीषा को देखा उसके आश्चर्य का ठिकाना ही नही रहा वह डैड के डर से थर थर कांपने लगा जाड़े के मौसम में वह पसीने से नहा गया ।
डैड शार्दुल विक्रम सिंह ने पूछा आप इस लड़की को जानते है विशेश्वर भौंचक्का कुछ भी बोल सकने की स्थिति में नही था चुप रहा जब डैड शार्दुल विक्रम सिंह ने डांटते हुये कठोर लहजे से पूछा तब विश्ववेशर बोला नही तब शार्दुल ने कहा यह लड़की तो कह रही है कि इसके जन्म दिन पर इसके माता पिता ने तुम्हारे और इसके रिश्ते का एलान कर चुके है।
विश्ववेशर चुप तभी काव्या दाखिल हुई बोली बेटा यही है तुम्हारी पसंद जिसकी चाहत तुम्हारी नजरो में मैने देखी थी तुम्हारे किशोर युवा मन मे जिसकी सूरत मैंने माँ होने के नाते तुम्हारी खुशियो में देखी है ।
विशेश्वर कुछ भी बोल सकने की स्थिति में नही था वह बोला यस मम्मी इतना सुनते ही शार्दुल सिंह बेटे की मासूम भवनाओं का सच समझ कर बोले विशेश्वर तुम तो# गिरगिट की तरह रंग बदल# रहे हो बेटा यह अच्छी आदत नही है इंसान को सोच समझ कर कोई निर्णय लेना चाहिए तदानुसार अपनी भावनाओं को स्वर शब्द का रूप देकर दुनियां के समक्ष प्रस्तुत करना चाहिए# गिरगिट की तरह रंग बदलना # मनावीय सभ्यता नही कुटिल कलुषित एव कायर आचरण ही हो सकता है।
मैंने भी आक्स्पोर्ट में पढ़ते समय ही काव्या तुम्हारी मम्मी को पसंद किया प्यार किया लेकिन जहां भी सच्चाई स्वीकार करनी पड़ी मुझे या काव्या को स्वीकार किया और आज भी खुश है।
भला हो मनीषा जिंदल का जिसने हिम्मत संयम और गम्भीरता का परिचय देते हुए वास्तविकता को बड़े साधारण एव उल्लासपूर्ण वातावरण में सबके समक्ष प्रस्तुत किया वह शार्दुल विक्रम सिंह की बहू एव राजवंशीय परम्परा की उच्च मर्यादाओं की नारी महिमा गरिमा बनाए जाने की मैं स्वीकृति देता हूँ ।
काव्य बोली मैंने तो पहले ही दे रखी है पूरा बातावरण खुशियों की तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा मनीषा ने डैड शार्दुल एव मम्मी काव्या का आशीर्वाद लिया ।।
नन्दलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखपुर उत्तर प्रदेश।।