सावन
दोहा पूर्ति# 94. (दोहा गजल)
सावन मन भावन लगे, रिमझिम पड़े फुहार।
घर आजा परदेसिया, सूना मन के द्वार।
धन दौलत रुपया वसन, ना पूरी पकवान,
ना मांँगू मैं आपसे, बाली, झुमका, हार।
सूना है घर आँगना, सूना है खलिहान,
साजन बिन सूना लगे, गाड़ी बंगला कार।
सारी उम्र गुजार दूँ, धर जोगन का भेष,
बदले में चाहूँ सजन, बस ठोड़ा सा प्यार।
दिल में जो रहते सदा, बनकर धड़कन साँस,
साजन बिन भाता नहीं, यह सोलह श्रृंगार।
(स्वरचित मौलिक)
#सन्तोष_कुमार_विश्वकर्मा_सूर्य’
तुर्कपट्टी, देवरिया, (उ.प्र.)
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