सावन
देखो सावन आ गया, लेकर रंग हजार।
धरती अंबर से मिली, कर धानी श्रृंगार।। १
सावन लाया है सखी, कई पर्व – त्योहार।
छिपा हुआ हर पर्व में, जीवन का आधार।।२
सावन आया झूम के, हरने सबकी पीर।
माल पुए के संग में, बनी श्रावणी खीर।।३
मिल जुल झूला झूलती, सखी-सहेली संग।
हरियाली सावन सखी, मन में भरे उमंग।। ४
सावन पावन माह में , है हरियाली तीज।
घर-आँगन झूले पड़े, व्यंजन बने लजीज।। ५
सावन की बरखा पड़ी,कृषक रोपते धान।
निरख-निरख निज खेत को, खुश होते भगवान ।।६
सावन में चारों तरफ, हरियाली का रंग।
सुन्दर लगती नारियाँ, पहने धानी अंग।। ७
सावन मनभावन सखी,लाया बरखा संग।
अम्बर में छाने लगा, इन्द्रधनुष का रंग।। ८
सावन साजन को लिए, आ जाना इस बार।
जब उनसे होगा मिलन, बरसा देना प्यार।।९
सावन में झूले लगे, सखी कदंब के डार।
हरियाली परिधान में, झूल रही है नार।।१०
भेजा सावन की घटा, सतरंगी उपहार।
जीवों को जीवन मिला, सुखी हुआ संसार।।११
सावन की बरखा पड़ी, छप-छप करते पाँव ।
कागज की चलने लगी, रंग बिरंगी नाव।।१ २
शिवमय सावन माह की, महिमा अपरंपार।
काँधे काँवर को लिए,जाना शिव के द्वार।। १ ३
सावन में सब नारियाँ, रचे मेंहदी हाथ,
धानी साड़ी चूड़ियाँ, धानी बिन्दी माथ।।१ ४
सावन बादल से कहे, यूँ बरसो हर रोज।
बाढ़ कही आये नहीं, रहे न जल की खोज।।१५
सावन मन बहका गया, बूँदें भरी खुमार।
चहका भँवरा बाग में, खिली कली कचनार।। १६
बूँदें मोती सी उछल, सावन ऋतु को झाँक।
दिया धरा की चुनर में, धानी गोटे टाँक।। १७
बूँद-बूँद सावन झड़ी, गाये मंगल गान ।
प्यासी तपती मृत धारा, छिड़क दिया है जान। १८
सावन जल बरसा रहा, कृषक रहें हैं झूम।
लह-लह करती जब फसल, निज खेतों को चूम।। १ ९
सावन में दिखने लगा,इन्द्रधनुष के रंग।
मोर नाच वन में रहा,घन गर्जन के संग।। २०
-लक्ष्मी सिंह