सावन मास निराला
सखी बरस रहा रिमझिम सावन, भिगो रहा मन का आंगन
सखी बरस रहा रिमझिम साबन
चंहुओर छाई हरियाली है, मनमोहक छटा निराली है घनघोर घटाएं छाईं हैं, नदियां भरी भराई हैं
पूर हुए सब नद नाले,झीलें भी उफनाईं हैं
धुले धुले हैं शैल शिखर, वन पर्वत रहे रिझाई हैं
छटा बिखेरी पावस ने, मौसम है मनभावन
सखी बरस रहा रिमझिम सावन,
भिगो रहा मन का आंगन
रंग-बिरंगे परिधानों में, सखियां सजी धजी हैं
हाथों में बज रही चूड़ियां, मेहंदी गजब रची है
नखशिख है सोलह सिंगार, बागों में झूला झूले हैं सप्त स्वरों में गूंज रहे, गीत भी नए नवेले हैं
बरस रहीं हैं मस्त फुहारें, झूम रहा जमकर सावन सखी बरस रहा रिमझिम सावन,
भिगो रहा मन का आंगन
सावन में आया सोमवार, भारत का अद्भुत त्यौहार गूंज उठा है बम बम भोले, खुशी से झूम रहा संसार
हर ओर सजे शिवाले हैं, हर हर महादेव के मेले हैं
व्रत उपवास शिव आराधन, रंग बड़े अलबेले हैं
हर हर गंगे अमरनाथ, पूरब से पश्चिम गूंज रहा
बोल बम हरि ऊं की धुन से, धरती अंबर डोल रहा
नर्मदे हर हर, हर हर गंगे ,दशों दिशा में गूंज रहा
हर तीरथ की छटा निराली है, श्रावण मास निराला है रक्षाबंधन का त्यौहार, संसार मनाने बाला है
भाई बहिन के प्रेम का बंधन, दुनिया में अति पावन
सखी बरस रहा रिमझिम सावन, भिगो रहा मन का आंगन
सुरेश कुमार चतुर्वेदी