*सावन मनुहार-!
लागे सावन मनुहार सुहावन
मेघा अम्बर छाये
घनघोर घटा सावन की बदरी
अधखिली धूप मुस्क्राये
कर वसुधा श्रंगार
तृण हरित धरा छितराये
जल नाल कुमुद फूले पोखर
चहुं ओर कली मुस्क्राराये
देख प्रकृति की अजब छटा
चित बार बार मनहर जाये
डाल डाल पर पड़े हिंडोला
कोइ गीत विरहणी गाये
बारी बारी झूले सखियां
गीत मांगलिक गायें
गूँज रहे हैं राग प्रीति के
सावन के दिन आये
लागे सावन मनुहार सुहावन
मेघा अम्बर छाये
घनघोर घटा सावन की बदरी
अधखिली धूप मुस्क्राये
(शरद कुमार पाठक)
डिस्टिक -( हरदोई)
(उत्तर प्रदेश)