सावन बना दो
किसने तुमसे कह दिया के
आँख को सावन बना दो
हो छटा बस तेरी सम्मुख
इतना बस पावन बना दो
साँवरी सूरत तुम्हारी
मन को रह – रह छू रही है
सामने हो तुम हमेशा
मेरी ये आरजू रही है
धुन छेड़कर बंसी पे अपने
मेरा हृदय उपवन बना दो
किसने तुमसे कह दिया के
आँख को सावन बना दो
हो छटा बस तेरी सम्मुख
इतना बस पावन बना दो
साथ में माँ राधा- रानी
हों खड़ी मुस्कान लेकर
उनको भी मंत्रमुग्ध करते
बांसुरी पर तान देकर
मेरा दिल तुमको भी भाए
इतना मनभावन बना दो
किसने तुमसे कह दिया के
आँख को सावन बना दो
हो छटा बस तेरी सम्मुख
इतना बस पावन बना दो
प्रेम तुझसे वैसे सबको
मीरा भी तेरे भरोसे
गोपियाँ तेरे भरोसे
राधा भी तेरे भरोसे
अब मुझे भी चाहकर
मुझपे भी चितवन बना दो
किसने तुमसे कह दिया के
आँख को सावन बना दो
हो छटा बस तेरी सम्मुख
इतना बस पावन बना दो
-सिद्धार्थ गोरखपुरी