सावन जैसी झड़ी
रूक रुक कर होती ये बरसात ठीक नहीं,
मेरे लिए आपके ये ख्यालात ठीक नहीं।
मत लगाओ प्रभु ये सावन जैसी झड़ी,
जानते हो आप तो मेरे हालात ठीक नहीं।
कर्ज़ के बोझ में हर पल मरा जा रहा हूँ,
ऊपर से आपका कहर, ये बात ठीक नहीं।
अन्नदाता होकर भूख से तड़पना पड़े मुझे,
हे प्रभु! बस आपकी ये करामात ठीक नहीं।
इच्छाएं क्या, प्रभु जरूरतें पूरी नहीं होती,
और आप कहते हो ये सवालात ठीक नहीं।
बनकर देखो किसान, ये दर्द समझ जाओगे,
खुद कहोगे गम की इतनी लंबी रात ठीक नहीं।
मैं लटकना तो चाहता था फाँसी के फंदे पर,
पर सुलक्षणा बोली ऐसी मुलाकात ठीक नहीं।
©® डॉ सुलक्षणा