सावन गीत
सावन की रिमझिम बारिश में
नाचे मेरा तन- मन- मोर।
मेघ- वेग से नभ आच्छादित
वन में बेमन डाल चकोर
तभी अचानक मेघ गगन से
छँटे सो विधु दिखा हँसे चकोर।।
मरुत् नहाती युवती सम है
जलकण शीतल लिए हुए,
चहुंदिशि सुंदर धरा हरित है
सुमन- उपेक्षित किए हुए
आसमान है अहा आनंदित
अट्टहास करता हुआ शोर
सावन की रिमझिम बारिश में
नाचे मेरा तन- मन- मोर।
बिजली- गर्जन से धरती है
लगती हँसती वधू समान
स्वाभिमान है बिजली, गर्जन-
मुखरित स्वर है गर्वित मान
निर्झरिणी में श्वेतामृत है
सरिता का नहीं दिखता छोर
सावन की रिमझिम बारिश में
नाचे मेरा तन- मन- मोर।
पंकज बिंदास