*”सावन को आने दो “*
लुका छिपी खेल खेलता ,
अंबर में काली घनघोर घटा छा जाने दो।
बिजुरी चमके जब मेघ गरजते ,
धरती की गोद भरी सोंधी मिट्टी की खुशबू में,
शीतल मंद पवन चली पुरवईया ,
अमुआ की डाली में झूला झूले सोलह श्रृंगार सखियों को झूम जाने दो।
सावन को आ जाने दो…..! !
काट वृक्षों को बना लिया आशियाना,
नया वृक्ष सभी लगा हरियाली शुद्ध हवाओं को आने दो।
अंतर्मन जब भींग जाय खुशहाली चहुँ ओर छा जाने दो।
कोयल कुहके गूंजेगा सघन वन उपवन ,
रिमझिम बारिश में तनमन भींग जाने दो।
सावन को आ जाने दो..! !
आँगन में बारिश की बूंदें टपकती ,
बच्चों को कागज की नाव पानी में तैराने दो।
भूली बिसरी उन बरसात की सुनहरी यादों में खो जाने दो।
आओ मिलकर वृक्षारोपण कर ,
कुदरत का श्रृंगार कर निखर जाने दो।
सावन को आ जाने दो….! !
सावन का बेसब्री से इतंजार कर,
हलधर बैठा उदास बीज रोपण कर नई फसलें उगाने दो।
तपती धरती की प्यास बुझेगी ,
आजाद पँछी उड़ान भर मदमस्त झूम जाने दो।
स्वाति नक्षत्र की बूंद चातक आस लगाए,
अमृत की बूंदें मिले प्राण को तृप्ति मिल जाने दो।
सावन को आ जाने दो….! !
हरी चुनरिया ओढ़ जब धरती इंद्रधनुषी छटा लहराने दो।
रोग शोक संताप मिटाने अब नई दिशा में प्रयासों को सफल हो जाने दो।
सावन की रिमझिम बारिश में ,
कष्टों को दूर करने कालों के काल महाकाल प्रभु जी अदृश्य शक्ति वरदान दे दो।
विष पीकर नीलकंठ महादेव कहलाते,
सावन की रिमझिम बारिश में तनमन शुद्ध पवित्र जल से भींग जाने दो।
सावन को आ जाने दो….! !
?शशिकला व्यास ?✍️