सावन की पहली बूँद
कुंज-वीथियों, उपवनों मे चारों ओर था सन्नाटा,
उदासीन थे समस्त तरुणगण से लेकर खेत-खाहिलन तक,
राह देख रहे थे सावन की पहली बूँद की,
प्यासी थी धरती माँ,
बिलख रहे थे मोती भी समुद्र में,
राह देख रहे थे सावन की पहली बूँद की,
सूख चुका था मेरे उपवन का सरोवर,
आँसू थे उन नन्ही कलियों की आँखों में,
राह देख रही थी वे भी सावन की पहली बूँद की,
आई सावन की पहली बूँद,
प्रफुल्लित हो उठी कलियाँ,
आगमन हुआ लाल पुष्पों का,
आई सावन की पहली बूँद,
सपने संजोने लगी मैं,
मन आंनद से नाच उठा मेरा,
समर्पित करूँगी नरेश को लाल पुष्प,
लूँगी मुहमाँगी कीमत,
सौगात है यही सावन की पहली बूँद की ,
पूछने लगी तितली हज़ारों सवाल मुझसे,
क्यों लगा रहा है बोली ? यही तो लाए खुशियाँ,
जलज सरोवर खिल उठते,तरु दल नाच उठते इनसे,
सावन की वे पहली बूँदें भी बोल उठी,
मत लगा मेरी बोली, अर्पित कर पुष्पों को उन योद्धाओं के चरणों मे,
जो कर रहे निस्वार्थ सेवा देश की,
सहसा आँख खुली मेरो दूटा स्वप्न, किया वादा सावन की पहली बूँद से
नहीं हार मानेगे, करेगे समाना हर मुशिकल का हम,
वट-वृक्ष के सघन कुंजों से पंछी भी बोल उठे,
पवन की लहरे भी बोल उठी,
यही तो यह सच्ची सौगात है सावन की पहली बूँद की ……