साल बीस इक्कीस
साल बीस इक्कीस
साल दो हज़ार बीस की टीस
चुभती रही दिल में बन नासूर
क़हर बनकर बरसा ये बरस
कितनों के अपने हो गए दूर
जो बीत गया सो बीत गया
कल का क्या ज़िक्र करना
आने वाले कल को जी लें
बीते की क्यों फ़िक्र करना
मंगलमय होगा ये नव वर्ष
न होगा कुछ भी उन्नीस बीस
सुख शांति समृद्धि होगी
स्वागतम साल बीस इक्कीस
रेखा
कोलकाता