साल दो हज़ार बीस
आए तो तुम भी थे उसी तरह पहली बार,
जैसे कोई आता है लेकर नई उम्मीदें नई बहार।
होने भी लगा था कुछ – कुछ तुमसे लगाव,
और सजा लिए थे हमने कुछ मीठे-से ख़्वाब।
कोशिश तो तुमने भी की ही होगी भरपूर..
उन ख़्वाबों और सपनों को पूरा करने की।
पर जैसे हो जाया करते हैं कुछ लोग जिन्दगी में,
तुम भी शायद हुए होंगे… वैसे ही मजबूर।
नहीं संभाल पाते वो लोग दूसरों की उम्मीदों को,
नहीं होती उन्हें परवाह किसी के रोने की भी।
हाँ होते हैं वो लोग अनमने या मनमाने से,
रौंदकर किसी के अरमानों को आगे बढ़ जाते हैं,
और कितने ही दिल यूँ ही कुचल दिए जाते हैं।
उन्हीं की तरह तुमने भी तो जाने कितने लोगों के
छलनी किए हैं सपने और छीने हैं उनके अपने।
बेदर्दी से लगते हो दिखने में..
अरे दिल है कहाँ तुम्हारे सीने में।
फिर भी हमने समझा अपना.. जो मांगा वो ठाठ दिया,
आंखें बन्द कर बातें मानी, पूरा मान-सम्मान किया।
छोटी-सी इक गलती पर ही तुमने सब कुछ भुला दिया।
सांसें रोकने का भी तुमने पूरा इंतजाम किया।
पर अच्छा ही किया तुमने जो अच्छा नहीं किया,
सबक भी तो गजब का हमको तुमने सिखा दिया।
कभी भूल नहीं पाएंगे तुम्हारे इतने सितम,
फिर भी विदा के वक्त अब हो रहीं हैं आंखें नम।
चले जाते हैं सब छोड़कर जैसे अब तुम्हें भी जाना होगा,
हाँ जाओ..अब रुकना तुम्हारा मुनासिब भी न होगा।
पर तुम रखना याद.. कि रह जाएंगे कुछ..
ना मिटने वाले निशान, कुछ ज़ख्म जो हरे ही रहेंगे ताउम्र..
और रह जाएगी हमेशा के लिए एक टीस….
सुनो अपना ख्याल रखना…
तुम जा तो रहे हो दो हज़ार बीस (2020)!!