साल के पहले दिन
इतंजार तो है हम जैसे को
कब मिल रहें काटें घड़ी के
बारह पर जाकर
लोग कर के मौज-मस्ती
दुबक जाए अपने-अपने घरों में जाके
फिर निकलेगें हम ले बोरा कबाड़ी का
खेलेगें हम साल भर उन अधजले पटाखों से
जिसे तुम लोग पुरा जलने तक का इतंजार न कर पाये
तुम लोगो के चेहरे से पुछी केक को खा पेट भर लेगे हम अनाथ भी
इस साल के पहले दिन।
क्या पता अगले साल के पहले दिन तक जीने देगें
कड़कड़ाती ठण्ड, चिलचिलाती धूप
और बरसात
अभी तो अपून सब खुश है
यह सोच कि आज
कई दिन बाद मिलेगा कुछ
खाने को
इस ठिठुरते ठण्ड में,
फिर तो रोना ही हम सबको
इस कुहासे के साथ