सार नियति का शेष यही है,
कभी चला ना कभी चलेगा,
सदा रहा ना सदा रहेगा,
कब तक दानव जग छलेगा
अंत समय पर हाथ मलेगा !
बल सदा ना रहा किसी का
रक्त यहां पर बहा सभी का
समय सभी का आना होता
जीवन सबका जाना होता !
युगो युगो से होता आया
छल ने खुद से धोखा खाया,
ह्रदय जिसने छल को पाला
खतरे खुद को उसने डाला !
होगी चाले कुटिल समर में,
गौरव गाथा कुंठित होगी,
कितना भी दुर्योधन योद्धा
कायर कीर्ति किंचित होगी !
छुआ नहीं होता द्रौपदी को
माँ सम भाभी घर नारी को,
अभिमन्यु वीर बाल सुत का
नहीं किया होता वध पुत्र का !
कलंक माथे ये बड़े लेकर,
चले विजय पाने को पथ पर
कैसे समय भुला पायेगा,
कर्मो का फल सम आएगा !
धर्म कर्म हिय तारा होता
स्वार्थ हित मन मारा होता
छल बल गर ना वारा होता
किंचित युद्ध ना हारा होता !
मनबल जिसका ऊंचा होगा
विजय धवज उसी संग होगा
रणभूमि में सत्य कब है रोता
कीचड़ बीच कमल सा खिलता !
बुराई का अवशेष यही है
चंचल मन का द्वेष यही है
सार नियति का शेष यही है,
इस जीवन का उद्देश्य यही है !!
!
डी के निवातिया