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11 Dec 2016 · 1 min read

सारे जहाँ को छोड़कर आना

सारे जहाँ को छोड़कर आना
इक़ इशारे पर दौड़कर आना

यही तो है शर्त मोहब्बत की
रुख़ हवाओं का मोड़कर आना

जो महका दे ता-उम्र के लिये
फूल कोइ ऐसा तोड़कर आना

ऊँचा हो मोहब्बत से भी वो
यकीं का रिश्ता जोड़कर आना

नज़र-ए-इनायत को अपने रब की
नारियल भी इक़ फोड़कर आना

वो भी उठाती आई है गर्दन
मुसीबतों की मरोड़कर आना

नफ़रत नहीं सिर्फ़ मोहब्बत की
ज़माने से ‘सरु’ होड़ कर आना

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