सारे गुनाह तेरे मैं आज माफ़ कर दूँ
सारे गुनाह तेरे मैं आज माफ़ कर दूँ
ये क़ायनात सारी अपने ख़िलाफ़ कर दूँ
जीने नहीं ये देती यादें अगर रही तो
अच्छा यही रहेगा इनको ही साफ़ कर दूँ
हिस्सा अगर हुआ तो खुशियाँ निकाल लेना
पूरी मिले तुझे मैं अपनी निसाफ़ कर दूँ
कोई रहे न बेघर सबको अगर मिले घर
ये चाँद और तारे सबका लिहाफ़ कर दूँ
मिलती नहीं मुहब्बत क्यों ज़िंदगी में ‘सागर’
मतलब नसीब से ऐलान-ए-मुसाफ़ कर दूँ