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12 Feb 2020 · 1 min read

सारे गुनाह तेरे मैं आज माफ़ कर दूँ

सारे गुनाह तेरे मैं आज माफ़ कर दूँ
ये क़ायनात सारी अपने ख़िलाफ़ कर दूँ

जीने नहीं ये देती यादें अगर रही तो
अच्छा यही रहेगा इनको ही साफ़ कर दूँ

हिस्सा अगर हुआ तो खुशियाँ निकाल लेना
पूरी मिले तुझे मैं अपनी निसाफ़ कर दूँ

कोई रहे न बेघर सबको अगर मिले घर
ये चाँद और तारे सबका लिहाफ़ कर दूँ

मिलती नहीं मुहब्बत क्यों ज़िंदगी में ‘सागर’
मतलब नसीब से ऐलान-ए-मुसाफ़ कर दूँ

2 Likes · 376 Views
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