सारा जीवन बीत गया है!
आधा धीरज रख कर बीता आधा मारामारी में,
सारा जीवन बीत गया है जीने की तैय्यारी में !
रोज़ चले पर कहीं न पहुँचे ऎसी डगर मिली हमको
सपनों में ही मिली हमेशा मंज़िल अगर मिली हमको
मगर ठोकरें नहीं गिनी चलने की ज़िम्मेदारी में
सारा जीवन बीत गया है…!
धूप छाँव की अनबन भी तो हमको रोज़ सिखाती है
दिन भर सूरज तपता है तो लोरी रात सुनाती है
सुख-दुख की चादर मिलती है सबको दुनियादारी में
सारा जीवन बीत गया है….!
गिरे मगर संघर्षों का वो हाथ नहीं छोड़ा हमने
टूटे लेकिन अरमानों का साथ नहीं छोड़ा हमने
मन की बात समाध बनी है तन की चारदिवारी में
सारा जीवन बीत गया है
जीने की तैय्यारी में !