सारा जगत बेचारा रे…
नूपुर छनके,
मधुर ध्वनि से,
कर्ण बहे रसधारा रे…।
विविध रूपों में,
तू है छलका,
सुंदर सहज सितारा रे…।
दसों द्वार से,
जब तू झाँके,
पुलकित तन मन सारा रे…।
तूने-
मूरत सुंदर दी है
मैंने नहीं सँवारा रे…।
तूने-
जतन बहुत ही कर दी,
मैं ही अकल का मारा रे…।
तेरे आगे-
बस एक तू है !!
सारा जगत बेचारा रे…!